गलियों में घूमते, आसमान के सितारे,
कभी चाँद अपने प्रतिबिंब को समंदर में निहारे।
नहीं वो समझ रहा फिर ये उजाला कैसा है,
उसे शायद जलन हो रही थी कि कोई उसके जैसा है।
सोच रहा है यह कौन है उसे चुनौती देने वाला,
ढूंढते-२ उसने पूरी धरती को खंगोल डाला।
देखी मैंने तब चाँद की यह उलझन, उसे पास बुलाया,
कोई है उससे प्यारा, उसे कई ही बार समझाया।
पूछा चाँद ने, मुझे बताओ यह कौन है,
जो छुपा कहीं बैठा है, चमकता है पर मौन है।
कहा मैंने शान से, यह प्रकाश तुमसे भी पवित्र है,
तुम तो रात में आते हो, ये हर समय महकता एक इत्र है।
इसे ढूंढकर पहचानना हर किसी के बस में नहीं,
फर्क नहीं पड़ता जो भी तुम्हारी रंग-भाव-जाट रही।
नहीं इससे पार पाना इतना आसान,
बिखर तुम जाओगे अगर करोगे इसका अपमान।
रहोगे आबाद अगर अभी तुम संभल जाओगे,
डींगे हांकना छोड़ो अपनी चमक की वरना जल जाओगे।
चाँद लज्जित सा शर्मिन्दा होकर फिर मुरझाने सा लगा,
और जानने की इच्छा से उसने पूछा, है क्या ये बला।
मैंने कहा, यह मछलियों का पानी से लगाव है,
यह सूरजमुखी का सूरज की ओर झुकाव है।
यह पतझड़ में भी बसंत से फूलों की बहार है,
यह सबके दिलों को जोड़ता वह ‘प्यार’ है।
समझ गए न अब, तुम्हे अब दुनिया को समझाना है,
प्रेम भक्ति में होकर लीन दुनिया में तुम्हे प्यार बढ़ाना है।
चाँद फिर विवश होकर रहा कुछ देर अवाक् खड़ा,
प्रेम के प्रकाश के आगे तब चाँद को भी झुकना पड़ा।
तभी जाकर कही बगीचों में रात की रानी खिली,
प्यार को समर्पित प्रकाश से चाँद तो फिर अपनी चांदनी मिली।।
© रचयिता : अंकुश आनंद ‘अक्ष आंश’
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Nice story bro
Thanks